पोस्ट का सारांश
इस लेख में आपने जाना कि थाट क्या है, थाट के प्रकार कितने हैं, और 10 मुख्य थाटों के नाम व उनके स्वर कौन-कौन से हैं। यह जानकारी संगीत प्रेमियों और छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
थाट क्या है – That Kya Hai
थाट (That) अथवा ठाट हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में रागों के विभाजन की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को थाट अथवा ठाट कहते हैं जिससे राग की उत्पत्ति होती है। थाट को मेल भी कहा जाता है।
इसका प्रचलन पं भातखंडे जी ने प्रारम्भ किया। हिन्दी में ‘ठाट और मराठी में इसे ‘थाट’ कहते हैं। उन्होंने दस घाटों के अन्तर्गत प्रचलित सभी रागों को सम्मिलित किया। वर्तमान समय में राग वर्गीकरण की यही पद्धति प्रचलित है।

That Ki Paribhasha (थाट की परिभाषा):
12 स्वरों (7 शुद्ध स्वर और 5 विकृत स्वर) में से 7 मुख्य स्वरों को एक निश्चित क्रम में सजाकर जो संरचना बनाई जाती है, उसे “थाट” कहते हैं। यह एक ऐसा स्वरों का समुदाय है, जिसके आधार पर विभिन्न रागों की रचना होती है। संस्कृत में थाट को “मेल” भी कहा जाता है।
थाट में 7 स्वर क्रमानुसार होते हैं, और यह स्वर शुद्ध या विकृत हो सकते हैं, जैसे कि कोई स्वर तीव्र (sharp) या कोमल (flat) हो सकता है। हर थाट एक निश्चित पैटर्न के अनुसार होता है और उसी के आधार पर उससे रागों की उत्पत्ति होती है।
12 स्वरों में से 7 क्रमानुसार मुख्या स्वरों के समुदाय को थाट कहते है जिससे रागो की उत्पत्ति होती है ।
थाट के लक्षण | That ke Lakshan
किसी भी थाट में कम से कम सात स्वरों का होना आवश्यक होता है।
स्वरों की स्थिति आरोही और अवरोही दोनों हो सकती है।
थाट के अंतर्गत आने वाले रागों की विशेषता उनके भाव और प्रमुख स्वरों से तय होती है।
थाट की रचना उसके अंतर्गत आने वाले रागों के आधार पर की जाती है।
थाट के प्रकार – Thaat Ke Prakar
पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने दस मुख्य थाटों (10 Thaat) का वर्गीकरण किया है।
इन दस थाटों के आधार पर ही अधिकांश रागों को व्यवस्थित किया गया है।
10 थाट के नाम
कल्याण थाट
बिलावल थाट
खमाज थाट
काफी थाट
पूरवी थाट
मारवा थाट
भैरव थाट
भैरवी थाट
आसावरी थाट
तोड़ी थाट
थाट-राग पद्धति में स्वर-साम्य का बहुत अधिक ध्यान रखा गया है। इस पद्धति के अनुसार एक थाट के अन्तर्गत उन्हीं रागों को रखा गया है जिन के स्वरों में अधिक समानता है। उदाहरणार्थ-कल्याण थाट में मध्यम तीव्र लगता है, इसिलये इस थाट से जितने भी राग उत्पन्न हों उन सभी में मध्यम तीव्र अवश्य लगेगा। इसी प्रकार काफी घाट में गंधार और निषाद स्वर कोमल लगते हैं, इसलिये इस घाट ने जितने भी राग उत्पन्न होंगे उन सभी में गंधार और निषाद कोमल अवश्य लगेंगे।
10 थाट का परिचय (10 Thaat Ka Parichay)
हर थाट के अंतर्गत ऐसे स्वर होते हैं जिनके आधार पर रागों की रचना की जाती है।
यहाँ पर 10 थाटों के प्रमुख स्वरों की सूची दी जा रही है:
- बिलावल: सा रे ग म प ध नि सा
- यमन: सा रे ग म प ध नि सा
- खमाज: सा रे ग म प ध नि सा
- भैरव: सा रे ग म प ध नि सा
- भैरवी: सा रे ग म प ध नि सा
- तोड़ी: सा रे ग म प ध नि सा
- पूर्वी: सा रे ग म प ध नि सा
- मारवा: सा रे ग म प ध नि सा
- आसावरी: सा रे ग म प ध नि सा
- काफी: सा रे ग म प ध नि सा
इस दोहे से थाटों का स्वरूप आसानी से याद किया जा सकता है:
भैरव भैरवि आसावरी, यमन बिलावल थाट।
तोड़ी काफी मारवा, पूर्वी और खमाज।।
शुद्ध सुरन की बिलावल, कोमल निषाद खमाज।
म तीवर स्वर यमन मेल, ग नि मृदु काफी थाट।।
गधनि कोमल से आसावरी, रे ध मृदु भैरव रूप।
रे कोमल चढ़ती मध्यम, मारवा थाट अनूप।।
उत्तरत रे ग ध अरु नी से, सोहत थाट भैरवी।
तोड़ी में रेग धम विकृत, रेधम विकृत थाट पूर्वी।।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. थाट और राग में क्या अंतर है?
थाट एक स्वरों का ढांचा (framework) होता है, जबकि राग एक भावपूर्ण संगीत रचना है जो उसी ढांचे (थाट) के स्वरों से बनती है।
थाट सिर्फ स्वरों की सूची देता है, लेकिन राग में आरोह-अवरोह, चलन और भाव शामिल होते हैं।
2. क्या हर राग किसी थाट से जुड़ा होता है?
जी हाँ, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रत्येक राग को किसी न किसी थाट के अंतर्गत रखा गया है।
यह वर्गीकरण राग को समझने और सिखाने में सहायक होता है।
3. सबसे सरल थाट कौन सा है?
बिलावल थाट को सबसे सरल और शुद्ध थाट माना जाता है क्योंकि इसमें सभी शुद्ध स्वर होते हैं।
यह शुरुआती विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त होता है।
4. क्या थाट दक्षिण भारतीय (कर्नाटक) संगीत में भी उपयोग होता है?
नहीं। थाट पद्धति विशेष रूप से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में उपयोग होती है।
कर्नाटक संगीत में “मेलakarta” नाम की पद्धति प्रयोग होती है जो थोड़ा अलग होती है।
5. क्या एक ही थाट से कई राग बन सकते हैं?
हाँ, एक थाट के आधार पर कई राग बनते हैं।
जैसे कल्याण थाट से यमन, पिहू, भीमपलासी जैसे राग उत्पन्न होते हैं।
हर राग की अपनी अलग पहचान होती है, भले ही वे एक ही थाट से बने हों।
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