इस पोस्ट में क्या है?
इस पोस्ट में हम राग वृन्दावनी सारंग का परिचय (Raag Vrindavani Sarang Parichay) प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसमें आप जानेंगे Vrindavani Sarang Notes, इसकी आरोह-अवरोह, पकड़, और राग वृंदावनी सारंग की प्रसिद्ध बंदिश “बन बन ढूंढ़न जाऊँ” के बारे में भी विस्तार से। यह बंदिश स्वरलिपि (Notation) सहित दी गई है, जिससे विद्यार्थी और संगीत प्रेमी दोनों लाभ उठा सकें।
Raag Vrindavani Sarang
वर्ज्य करे धैवत गन्धार, गावत काफी अंग ।
दो निषाद रे प सम्वाद, है वृन्दावनी सारंग ॥
राग वृंदावनी सारंग का परिचय – वृन्दावनी सारंग राग का जन्म काफी थाट से माना जाता है। गंधार और धैवत स्वर वर्ज्य हैं, मूलतः इसकी जाति औडव-औड्व है। वादी स्वर ऋषभ तथा सम्वादी पंचम को माना जाता है। इसका गायन-समय मध्याह्न काल है। इसमें दोनों निषाद और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग में शामिल हैं।
वृन्दावनी सारंग आरोह-अवरोह और पकड़
- आरोह: .नि सा रे, म प, नि सां
- अवरोह: सां नि प, म रे, सा
- पकड़: रे म प नि प, म रे, नि सा

Vrindavani Sarang Raag
विशेषता | विवरण |
---|---|
थाट (Thaat) – | काफी |
जाति (Jati) – | औडव-औडव |
वादी (Vadi) – | रिषभ (रे) |
संवादी (Samvadi) – | पंचम (प) |
गायन समय – | मध्याह्न काल (12 PM – 3 PM) |
कृती (Nature) – | गंभीर, कोमल और मधुर प्रकृति |
राग वृन्दावनी सारंग – विशेषताएँ
- राग में दोनों निषाद (शुद्ध व कोमल) प्रयुक्त होते हैं।
- धैवत (ध) और गंधार (ग) का प्रयोग पूर्णतः वर्ज्य है।
- यह राग ग्रीष्म ऋतु का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे मल्हार वर्षा ऋतु का।
मतभेद और थाट विवाद
- कुछ संगीतज्ञ इसे खमाज थाट से जोड़ते हैं, लेकिन स्वरूप की दृष्टि से यह काफी थाट जन्य अधिक उपयुक्त माना जाता है। यह मतभेद इस राग की गहराई और विविधता को दर्शाता है।
राग वृंदावनी सारंग बंदिश – बन बन ढूंढ़न जाऊँ
स्थायी
बन बन ढूंढ़न जाऊँ
कित हूँ छिप गए
कृष्ण मुरारी
अंतरा
शीस मुकुट और
कानन कुँडल
बंसी धरमन
रंग फिरत गिरधारी
बिन बन ढूंढ़न जाऊँ
Raag Vrindavani Sarang Bandish
राग वृंदावनी सारंग तान ( 16 मात्रा )
- .निसा रेम पनि सां- | सांनि पम रेम रेसा | .निसा रेम पनि सांनि | निनि पम रेम रेसा |
- .निसा रेरे सारे मम | रेम पप मप निनि | पनि सांसां पनि सांसां | सांनि पम रेम रेसा
- .निसा रे.नि सारे. निसा | रेम परे मप रेम | पनि सांप निसां पनि | सांनि पम रेम रेसा
10 महत्वपूर्ण FAQs – राग वृन्दावनी सारंग
1. वृन्दावनी सारंग किस थाट से संबंधित है?
यह राग काफी थाट से संबंधित है।
2. इसमें कौन-कौन से स्वर वर्ज्य हैं?
गंधार (ग) और धैवत (ध) वर्ज्य हैं।
3. इस राग का वादी और सम्वादी स्वर क्या है?
वादी – रिषभ (रे), सम्वादी – पंचम (प)
4. वृन्दावनी सारंग का गायन समय क्या है?
मध्याह्न (12 PM से 3 PM)
5. इस राग की जाति क्या है?
औडव-औडव
6. क्या इस राग में दोनों निषाद प्रयोग होते हैं?
हाँ, आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल निषाद का प्रयोग होता है।
7. यह राग किन ऋतुओं से संबंधित माना जाता है?
ग्रीष्म ऋतु का राग माना जाता है।
8. वृन्दावनी सारंग में कौन-कौन सी रचनाएँ गाई जाती हैं?
ध्रुपद, बड़ा ख्याल, छोटा ख्याल, तराना।
9. इसकी पकड़ क्या है?
रे म प नि प, म रे, नि सा
10. क्या वृन्दावनी सारंग में धैवत कभी प्रयोग होता है?
प्राचीन ध्रुपदों में कहीं-कहीं शुद्ध धैवत मिलता है, परंतु वर्तमान समय में यह वर्ज्य है।
How To Read Sargam Notes
कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:
- कोमल ग: ग(k) या ग
- कोमल रे: रे(k) या रे
- कोमल ध: ध(k) या ध
- कोमल नि: नि(k) या नि
नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।
तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:
- तीव्र म: म(t) या मे
स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।
तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।
मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।
- उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि
तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।
- उदाहरण: सां = तार सप्तक सा
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